Thursday, March 17, 2011

खुदा के बंदों के बिना नहीं जमता रंग श्याम के दरबार में

खाटू में हर साल फाल्गुन में लगने वाला श्याम धणी का लक्खी मेला अपने पूरे शबाब पर है | इस मेले में दुनिया भर के करीब दस लाख लोग शिरकत करते हैं | ये मेला श्याम के दीवानों की बाबा के प्रति अपार श्रुद्धा को तो व्यक्त करता ही है साथ ही साथ कौमी एता की भी अनूठी मिसाल पेश करता है | मेले के इन्हीं अनछुए पहलुओं को हम आपके सामने रखना चाहते हैं | 
चांद खां का परिवार हर साल खाटूनरेश की सवामणी करते हैं। चांद खां ने बताया कि उनका परिवार दस साल से बाबा श्याम की सवामणी करते आ रहे हैं। सवामणी में भी सभी धर्मों के लोग प्रसादी लेने के लिए पहुंचते हैं। इस बार इन्होंने एक नई शुरुआत और की। रींगस से खाटूश्यामजी तक पैदल यात्रा करके। इनका कहना है कि पैदल यात्रा की शुरुआत सालों तक बने रहेगी। चांद खां के पुत्र अकबर अली कहते हैं- हिंदू मुसलमान में हम फर्क महसूस नही करते हैं।
लियाकत अली, अमानत अली व शलामत खां, यह सिर्फ तीन शख्स नहीं है ये वो नाम हैं जिनके सभी श्याम भक्त दीवाने हैं | जब ये श्याम के दरबार में सुरों की महफ़िल सजाते हैं तो बड़े बड़ों के कदम थिरकने लग जाते हैं  इनके भजनों में लखदातार के लाखों श्रद्धालु झूम उठते हैं। गायक लियाकत अली बताते हैं- वे 20 साल से बाबा श्याम के भजन-कीर्तन कर रहे हैं। यह सिर्फ बाबा श्याम के मेले तक ही सीमित नहीं है। साल के हर दिन रात के आठ बजते ही श्याम के दरबार में सुरीली महफिल सज जाती है। इन्हें सुनने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। उनके पिता मजीद खां भी भजन गाते थे।
श्याम के एक और भक्त हैं- खुदाबक्स खां तैली। इन्होंने 40 सालों से श्याम बाबा की रथ यात्रा को तैयार करने की कमान थाम रखी है। रथयात्रा कस्बे के मुख्य मार्गों से निकाली जाती है। रथ की रिपेयरिंग और उसको तैयार करने की जिम्मेदारी निभाते हुए उनके दिल को अलग सी खुशी मिलती है। कहते हैं- जब तक हिम्मत है, तब तक जिम्मेदारी निभाते रहेंगे। 

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