Friday, March 23, 2012

साइकिल से विश्व यात्रा पर निकले विकलांग लिण्डोन

यदि मनुष्य में दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो विकलांगता भी आड़े नहीं आती। इसी को चरितार्थ किया है बेल्जियम के 50 वर्षीय लुडो लिंडोन ने। दुर्घटना में घुटने के नीचे से एक पैर गंवाने वाले लिंडोन विश्व शांति का संदेश देने साइकिल पर दुनिया का भ्रमण कर रहे हैं। रविवार को फतेहपुर पहुंचे लिंडोन का कहना है कि मनुष्य मन में ठान ले तो विकलांगता भी उसके लक्ष्य में रुकावट नहीं बन सकती।
दो अप्रैल 2011 को बेल्जियम के हैचटल शहर से साइकिल पर विश्व की यात्रा शुरू करने वाले लिंडोन की यात्रा का समापन दो अप्रैल 2015 को होगा। अब तक वे हालैंड, जर्मनी, आस्ट्रिया, स्वीट्जरलैंड, इटली, ग्रीस, टर्की, ईरान, शारजाह व श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं। वे विकलांग एथलेटिक्स तथा तीन ओलिंपिक में भाग लेने के अलावा कनाडा में हुई व्हील चेयर बास्केटबाल प्रतियोगिता में भी अपने जौहर दिखा चुके हैं। लूडो लिन्डोन का मानना है कि शारीरिक विकलांगता ईश्वरप्रदत्त है, परंतु मानसिक विकलांगता मनुष्य की स्वयं की देन है। फतेहपुर आने पर नादीन ली प्रिंस हवेली में नादीन ली प्रिंस, अनूप ढंड, विमल भारद्वाज आदि ने लिंडोन का स्वागत किया। लिन्डोन ने कहा कि ईश्वर की कृपा से उन्हें अब तक यात्रा में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।

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