Tuesday, December 14, 2010

मोहर्रम की तैयारियां शबाब पर

चांद की पहली रात के साथ ही इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाने वाला मोहर्रम शुरू हो गया है। दस दिन तक मुस्लिम समाज के लोग रोजे रखते हैं। इन दस दिनों में जगह-जगह मजलिस होते हैं, जिसमें इमाम हुसैन के वाकयात और नबी की सीरत बयान की जाती है। मोहल्लों में अलग-अलग अखाड़ों में लोगों को छबील (शरबत) पिलाया जाता है और सीरणी (प्रसाद ) बांटा जाता है। मोहर्रम की सातवीं तारीख को अलम का जुलूस निकाला जाता है, जिसमें पंजे के निशान के साथ मातमी धुनों पर ढोल और ताशे बजाए जाते हैं। चांद की नवीं रात (16 दिसंबर) कत्ल या मेंहदी की रात होती है। इस रात इमामबाड़ों से ताजिये बाहर निकालकर मुकाम पर पहुंचाए जाते हैं। रात भर अखाड़ों में मातमी धुनों पर ढोल-ताशे बजाए जाते हैं। 17 दिसंबर को चांद की दसवीं रात होगी, जिस दिन मोहर्रम का जुलूस निकाला जाएगा। विभिन्न इलाकों से होते हुए ताजिये कर्बला मैदान की ओर रुख करेंगे।


फतेहपुर के शहर काजी गुलाम मुर्तजा अशरफी सिद्दीकी के मुताबिक, करीब साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को बादशाह यजीद ने अपनी हुकूमत फरमाने के लिए मुतालवा किया था। यजीद का जीवन इस्लाम के अनुरूप नहीं होने के कारण उससे बेअत करने की बजाय इमाम हुसैन ने जंग करने का फैसला किया। यजीद की फौज से बगदाद के पास कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन का आमना-सामना हुआ। जंग में इमाम हुसैन के जवान बेटे अली अकबर, छह माह के छोटे बेटे अली असगर और भाई के बेटे कासिम समेत 72 शख्स शहीद हो गए। अंत में इमाम हुसैन भी शहीद हो गए, लेकिन उन्होंने यजीद की गुलामी अख्तियार नहीं की। इमाम हुसैन की शहादत की याद में तब से मोहर्रम का त्योहार मनाया जाता है।

फतेहपुर क मुराद और उसका भाई खैरुद्दीन सालों से ताजिये बनाने का काम कर रहे हैं। मुराद ने बताया कि बड़ा और आकर्षक ताजिया बनाने में कई बार पांच-छह महीने का समय तक लग जाता है। फतेहपुर और आस-पास के इलाकों के ज्यादातर ताजिये ये दोनों भाई ही बनाते हैं।शेखावाटी मे सबसे पुराने ताजिये फतेहपुर से ही निकाले जाते हैं । जानकारों के मुताबिक करीब 350 वर्षो से फतेहपुर में मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है। फतेहपुर में पीर अमजद अली की सदारत में जुलूस निकाला जाता है, जो पीर का रोजा से शुरू होता है और रास्ते में इसमें लुहारों, तेलियों, इलाहियान के ताजिये जुड़ते हैं। फतेहपुर में कुल 11 ताजिये निकाले जाते हैं। पीर का रोजा से शुरू होकर ये ताजिये शेर सुल्तान की दरगाह के पास बने कर्बला में दफनाए जाते हैं। मोहर्रम के जुलूस पर निकाले जाने वाले ताजिये मुख्यत: बांस की पट्टियां और कांच का बना होता है, लेकिन फतेहपुर में पीर अमजद अली की सदारत में निकलने वाला ताजिया सोने-चांदी से बना है। पीर अमजद अली ने बताया कि 1988 में बनाए गए इस ताजिये में एक किलो सोना और चालीस किलो चांदी का इस्तेमाल किया है। जानकारों के मुताबिक, तत्कालीन फ तेहपुर नवाब अलफ खां ने पीर अमजद अली के वंशज सैयद ताजुद्दीन को ताजिये निकालने की इजाजत दी थी। सैयद ताजुद्दीन पीर के रोजा दरगाह के सज्जादानशीन थे।

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