स्वतन्त्रता संग्राम के चश्दीद सिपहसालार हैं कस्बे के सदीक अहमद भारतीय। 1929 में जन्मे सदीक अहमद भारतीय ने प्रजा मंडल सहित अन्य संगठनों के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया। साल 1944 में धर्म के नाम पर देश को बांटने की बातें हुई और आजादी के बाद 1947 में देश के दो टुकड़े हुए तो अन्य देशभक्तों की तरह ही उन्हें भी गहरा धक्का लगा। उन्होंने अपना सरनेम बदलने की ठान ली।
अपने अन्य साथियों जमनालाल बजाज, रामदेवसिंह महरिया, सेठ सोहनलाल दूगड़ से चर्चा करने के बाद उन्होंने अपने नाम के साथ भारतीय लिखना शुरू किया। अब उनके परिवार के सभी सदस्य अपने नाम के साथ भारतीय लिखते हैं। कुछ सदस्य
अपने नाम के साथ भारती भी लिख रहे हैं। 92 वर्षीय सदीक अहमद भारतीय बताते हैं, उनका सरनेम बदलने का मकसद लोगों को यह संदेश देना था कि देश में रहने वाला हर शख्स पहले भारतीय है। बाद में किसी धर्म, जाति से संबंध
रखता है। भारतीय का बोध उन्हें निष्पक्ष और धर्मनिरपेक्ष रहने की प्रेरणा देता है।
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