एक बार फिर भादी मावस आते ही सूनी पडी हवेलियों की पथराई आँखों में कुछ चमक लौटने लगी है, और क्यों न लौटे साल में एक बार जब उनका ताला खुलता है वो दिन फिर आने वाला है. भादी मावस पर बहुत से प्रवासी अपनी सती माता को धोक देने के लिए अपनी जन्म भूमि पर कदम रखते हैं. शायद ये यहाँ की माटी की बदनसीबी है क़ि सती माता के भक्तों को जन्म भूमि की सुध लेने की फुर्सत कम ही मिलती है दिन ब दिन खंडहर में परिवर्तित होती हवेलियों का अप्रतिम सौंदर्य यहाँ के निवासियों को भी शायद नहीं सुहाता इसीलिये रजवाड़ी शान औ शौकत की पर्याय हवेलियों शनै शनै भू माफियाओं के चंगुल में आकर कंकरीट के जंगलों में परिवर्तित होती जा रही है. प्रवासियों को उनकी सुध लेने की फुर्सत नहीं है और स्थानीय नागरिक उनसे पंगा लेने की जहमत मोल नहीं लेना चाहते, और नतीजतन परम्परा और संस्कृति की प्रतीक चिन्ह हवेलियाँ काल के गर्त में समाती जा रहीं हैं.
कैसी अजीब विडम्बना है क़ि फ्रांस की एक लेडी आकर यहाँ की कला का महत्त्व समझ जाती है और एक हवेली का पुनरुद्धार करा आर्ट गैलेरी शुरू कर देती है लेकिन यहाँ के बाशिंदे स्वयं ये सब देख कर भी अनदेखे बने रहते हैं. निकटवर्ती कस्बा मंडावा कला समृद्धि के लिहाज से फतेहपुर को देखते हुए अत्यंत गौण है किन्तु पर्यटन व विकास में कई गुना आगे है . उल्लेखनीय है मंडावा की हवेलियाँ जिनका रूपांतरण होटलों के रूप में कर दिया गया था आजकल विदेशी सैलानियों से भरी रहती है . लेकिन फतेहपुर निवासियों की आँखों की पट्टी ना जाने कब खुलेगी. भगवान जाने कभी यहाँ के भी दिन आयेंगे या फिर यूं ही ये अनमोल विरासत सिसक सिसक के दम तोड़ देगी
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