ब्लाॅक में पशु चिकित्सा सेवाएं पूरी तरह से लड़खड़ा गई है। पशुधन पर ग्रामीणों का पूरा गणित टिका है और शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सकों, पशुधन सहायकोंं, पशुधन सहचर व सफाईकर्मियों के पद खाली होने से ग्रामीणों को अपने पशुधन के लिए चिकित्सा सेवा नहीं मिल रही है। उन्हें अपने पशुओं के इलाज के लिए निजी डाॅक्टरों पर निर्भर रहना पड़ता है जो बेहद खर्चीला होता है।अधिकांश स्थानों पर समुचित व्यवस्था नहीं होने से राज्य सरकार की निशुल्क योेजनाओं का लाभ भी ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। दैनिक भास्कर ने पूरे ब्लाॅक के पशु चिकित्सालयों और सबसेंटर के हालात जाने तो गंभीर स्थिति सामने आई।
कस्बे में खुद का भवन नहीं है। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सालय भवन के लिए भूमि चिह्नित नहीं होने पर 2010 में तत्कालीन विधायक भंवरू खां द्वारा विधायक कोटे से दिए गए पांच लाख की राशि लैप्स हो गई। कस्बे में पशु चिकित्सालय धर्मशाला में चल रहा है। रोडवेज बस स्टैंड पर होने से इस धर्मशाला पर भी भूमाफिया की नजर है। राजकीय लापरवाही से पशु चिकित्सालय के आधे हिस्से पर कब्जा हो गया। पशु चिकित्साधिकारी को बाकी बचे हिस्से को बचाने के लिए एसीजेएम कोर्ट फतेहपुर में तारीख पेशियों पर चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।भूमि स्वामित्व से संबंधित मुकदमे एसीजेएम कोर्ट फतेहपुर में लंबित चल रहे हैं। रोडवेज बस स्टैंड पर बरसात में पानी भराव की समस्या होने से बरसात में पशु चिकित्सालय में पानी भर जाता है। दवाइयां व स्टाॅक आदि खराब हो जाता है। यहां वेटरनरी सहायक की पोस्ट आठ साल से खाली है।
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