फतेहपुरकस्बे का 565वां स्थापना दिवस सोमवार को है। इसे चौहान राजा मोटे राव के पड़पौत्र नवाब फतेह खां ने बसाया था। कायमखानी शासक नवाब फतेह खां ने संवत 1505 में फतेहपुर किले की नींव रखी थी। उन्होंने चैत्र शुक्ला पंचमी संवत 1508 को गढ़ में प्रवेश किया था और 23 वर्ष तक फतेहपुर पर शासन किया। चैत्र शुक्ला पंचमी 1508 से चैत्र शुक्ला प्रतिपदा संवत 1788 तक 279 वर्ष 11 माह और 25 दिनों तक 12 नवाबी शासकों का राज रहा। इसके बाद चैत्र शुक्ला प्रतिपदा संवत 1788 को राव राज शिवसिंह ने तत्कालीन नवाबी शासक को परास्त कर फतेहपुर पर अाधिपत्य जमाया, तब से संवत 2011 तक 10 राजपूत शासकों ने 226 वर्ष तक शासन किया।
कस्बे में लोग केवल दो छतरियों को जानते हैं, जगन्नाथ सिंहानिया की छतरी और दूसरी रामगोपाल गनेड़ीवाल की छतरी, लेकिन इसके अलावा भी छोटी-छतरियां हैं। लोगों को उनकी जानकारी नहीं है। उनके नाम है रुकमानंद की छतरी (त्रिभुवन स्कूल), धाभाई की छतरी (कृष्ण सत्संग), नेवटिया की छतरी (शीतला स्कूल के पास) खेमका छतरी (गैस गोदाम के पास)।
कस्बे में होटल हवेली के सामने घड़वा जोहड़ा और बीड़ में रामगोपाल गनेड़ीवाल का जोहड़ा है। इसके अलावा बांकिया बालाजी के पास जोहड़ा, मुसानिया जोहड़ा (कृषि गोदाम के पास), एनएच 52 पर पिंजरापोल में छोटी जोहड़ी, मंडावा रोड पर कसेरा बीड़ में भी जोहड़ा है, लेकिन लोगों को जानकारी नहीं है।
फतेहपुर के संस्थापक नवाब फतेह खां ने फतेहपुर के अतिरिक्त अपने शासनकाल में चार गढ़ और बनाए थे। उनमें पल्लू, साहवा, भादरा भारण (बायला) हैं।
नवाब दौलत खां संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने दौलत विनोद सार ग्रंथ लिखा था।
सेठजीआर चमड़िया काॅलेज के गीता हाॅल में संगरमर के पत्थरोंं पर संपूर्ण गीता लिखी हुई है
फतेहपुर में सर्वप्रथम रेल चैत्र बदी 14 संवत 1995 में सीकर से फतेहपुर तक चली थी। संवत 2011 में रेल चूरू तक पहुंची थी। संवत 1983 में रेलवे स्टेशन से मुकुंदगढ़ तक बस चली थी।
पहला रेडियो सेट सेठ श्रीगोपाल नेवटिया संवत 1985 में लाए थे।
दूसरे नवाब जलाल खां ने पशुधन विकास के लिए 12 कोस का बीड़ छोड़ा था। यह बीड़ राज्य में सबसे बड़ा है।
संवत 1663 में दादूदासजी के शिष्य प्रयागदास ने फतेहपुर में दादू द्वारे की स्थापना की थी। संत सुंदरदास ने इसे ही अपनी तपोभूमि बनाया।
फतेहपुर में सबसे पहला पुस्तकालय 200 वर्ष पूर्व संत बुधगिरीजी ने बुधगिरीजी की मढ़ी पर बनाया था। जीवित समाधि लेने से पूर्व उन्होंने सभी पुस्तकें श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर में पहुंचा दी थी।
फतेहपुर कस्बा हवेलियों, बावड़ी, कुओं और भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। कभी 15 साल में कस्बे से 50 से अधिक हवेलियों को तोड़कर व्यावसायिक काॅम्पलेक्स बना दिए। सबसे अधिक हवेलियां बावड़ी गेट, संकड़ी गली, सीकरिया चौरास्ता, मुख्य बाजार में टूटी हैं। बावड़ी गेट पर नाभली वालों, सरावगियों की हवेली, जालान हवेली, अर्जुनदास गोयनका हवेली, छपरावाले सरावगियों की हवेली, सुखानंद सरावगी की हवेली, केडिया हवेली, जैन हवेली, रंगलाल सरावगी की हवेली, फतेहचंदका की हवेली, पोदार हवेली, सीताराम केडिया की हवेली को भूमाफिया ने नष्ट कर दिया।
दादूसंप्रदाय के दूसरे सबसे बड़े संत सुंदरदास की समाधि बदहाल स्थिति में है। वे महान साहित्यकार थे और उन्हें साहित्य का शंकराचार्य भी कहा जाता है। उन्होंने अनेक अद्भुत रचनाएं लिखी। उनकी स्मृति में भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था। पूरे देश में सुंदरदास ने पांच स्तंभ स्थापित किए थे, जिनमें फतेहपुर सबसे प्रमुख था।
कस्बेकी सबसे अनमोल विरासत लाल पत्थरों की हवेली इसके स्वामियों की उपेक्षा से पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है और इसका नामोनिशान भी नहीं बचा है। लाल पत्थरों पर बेहद बारीक कारीगरी से यह देशी-विदेशी सैलानियों का मन मोह लेती थी। सभी देशी-विदेशी लेखकों की पुस्तकों में इसका स्थान सबसे पहले आता था।
कस्बे में लोग केवल दो छतरियों को जानते हैं, जगन्नाथ सिंहानिया की छतरी और दूसरी रामगोपाल गनेड़ीवाल की छतरी, लेकिन इसके अलावा भी छोटी-छतरियां हैं। लोगों को उनकी जानकारी नहीं है। उनके नाम है रुकमानंद की छतरी (त्रिभुवन स्कूल), धाभाई की छतरी (कृष्ण सत्संग), नेवटिया की छतरी (शीतला स्कूल के पास) खेमका छतरी (गैस गोदाम के पास)।
कस्बे में होटल हवेली के सामने घड़वा जोहड़ा और बीड़ में रामगोपाल गनेड़ीवाल का जोहड़ा है। इसके अलावा बांकिया बालाजी के पास जोहड़ा, मुसानिया जोहड़ा (कृषि गोदाम के पास), एनएच 52 पर पिंजरापोल में छोटी जोहड़ी, मंडावा रोड पर कसेरा बीड़ में भी जोहड़ा है, लेकिन लोगों को जानकारी नहीं है।
फतेहपुर के संस्थापक नवाब फतेह खां ने फतेहपुर के अतिरिक्त अपने शासनकाल में चार गढ़ और बनाए थे। उनमें पल्लू, साहवा, भादरा भारण (बायला) हैं।
नवाब दौलत खां संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने दौलत विनोद सार ग्रंथ लिखा था।
सेठजीआर चमड़िया काॅलेज के गीता हाॅल में संगरमर के पत्थरोंं पर संपूर्ण गीता लिखी हुई है
फतेहपुर में सर्वप्रथम रेल चैत्र बदी 14 संवत 1995 में सीकर से फतेहपुर तक चली थी। संवत 2011 में रेल चूरू तक पहुंची थी। संवत 1983 में रेलवे स्टेशन से मुकुंदगढ़ तक बस चली थी।
पहला रेडियो सेट सेठ श्रीगोपाल नेवटिया संवत 1985 में लाए थे।
दूसरे नवाब जलाल खां ने पशुधन विकास के लिए 12 कोस का बीड़ छोड़ा था। यह बीड़ राज्य में सबसे बड़ा है।
संवत 1663 में दादूदासजी के शिष्य प्रयागदास ने फतेहपुर में दादू द्वारे की स्थापना की थी। संत सुंदरदास ने इसे ही अपनी तपोभूमि बनाया।
फतेहपुर में सबसे पहला पुस्तकालय 200 वर्ष पूर्व संत बुधगिरीजी ने बुधगिरीजी की मढ़ी पर बनाया था। जीवित समाधि लेने से पूर्व उन्होंने सभी पुस्तकें श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर में पहुंचा दी थी।
फतेहपुर कस्बा हवेलियों, बावड़ी, कुओं और भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। कभी 15 साल में कस्बे से 50 से अधिक हवेलियों को तोड़कर व्यावसायिक काॅम्पलेक्स बना दिए। सबसे अधिक हवेलियां बावड़ी गेट, संकड़ी गली, सीकरिया चौरास्ता, मुख्य बाजार में टूटी हैं। बावड़ी गेट पर नाभली वालों, सरावगियों की हवेली, जालान हवेली, अर्जुनदास गोयनका हवेली, छपरावाले सरावगियों की हवेली, सुखानंद सरावगी की हवेली, केडिया हवेली, जैन हवेली, रंगलाल सरावगी की हवेली, फतेहचंदका की हवेली, पोदार हवेली, सीताराम केडिया की हवेली को भूमाफिया ने नष्ट कर दिया।
दादूसंप्रदाय के दूसरे सबसे बड़े संत सुंदरदास की समाधि बदहाल स्थिति में है। वे महान साहित्यकार थे और उन्हें साहित्य का शंकराचार्य भी कहा जाता है। उन्होंने अनेक अद्भुत रचनाएं लिखी। उनकी स्मृति में भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था। पूरे देश में सुंदरदास ने पांच स्तंभ स्थापित किए थे, जिनमें फतेहपुर सबसे प्रमुख था।
कस्बेकी सबसे अनमोल विरासत लाल पत्थरों की हवेली इसके स्वामियों की उपेक्षा से पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है और इसका नामोनिशान भी नहीं बचा है। लाल पत्थरों पर बेहद बारीक कारीगरी से यह देशी-विदेशी सैलानियों का मन मोह लेती थी। सभी देशी-विदेशी लेखकों की पुस्तकों में इसका स्थान सबसे पहले आता था।
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