फतेहपुर में पड़ रही कड़ाके की ठंड ने लोगों की दिनचर्या खासी बदल दी है। सबकुछ बदला सा
नजर आने लगा है। पारे का असर इस कदर है कि पानी भी जमने लगा हैं। दुपहिया
वाहनों पर तो सर्द हवा शूल की तरह चुभने लगी है। मौसम के इस मिजाज में
हर किसी से यही बात सुनने को मिलता है
कि स्याळा म तो काम ही कौनी हुवे। ग्रामीण इलाकों में कड़ाके की ठंड में
बचाव के लिए अलाव सबसे बड़ा सहारा बन रहा है। सुबह और शाम के समय गांव के
चौक और चौराहों पर बुजुर्ग अलाव तापते नजर आते हैं। गांव के गुवाड़ में देर
रात तक चलने वाली बैठकों के दौर घरों तक सीमित हो गए हैं। कंपकंपा देने
वाली सर्दी में सुबह आठ बजे बाद ही दिनचर्या सामान्य हो पाती है, तो रात को
सात बजे बाद चहल पहल न के बराबर हो जाती है। कहर बरपाती ठण्ड के बारे में बारी गांव के जगदीश जाखड़ बताते हैं कि पहले सुबह सुबह ही खेतों में चले
जाते थे। इससे दिन में दो चक्कर खेत के हो जाते थे। लेकिन अब सर्दी में एक
ही चक्कर हो पाता है। पशुओं को सर्दी से बचाना बड़ी चुनौती बना हुआ है।
गारिंडा के भागीरथमल डारा कहते हैं खेती का काम काफी प्रभावित हो रहा है।
फिर चाहे बात खेजड़ी छंगाई की हो या फव्वारे बदलने की।किसान मंगेजसिंह, सुल्तानसिंह कहते हैं कि फसलों को पाले से बचानें के लिए
रात में पानी देना पड़ता है। रात में फव्वारे और पाइप बदलते समय शरीर
सुन्न हो जाता है। कई दफा पाइप में बचा पानी जम जाता है। इससे पाइप फट जाते
हैं। नरेंद्र कडवासरा कहते हैं कि कड़ाके की ठंड पशुओं के दूध की मात्रा
भी गिर गई है।
गोविंदपुरा के 93 वर्षीय पूर्णाराम भामू और गारिंडा के 74 वर्षीय सेवानिवृत
शिक्षक मन्नाराम डारा बताते हैं कि आजकल की सर्दी के मुकाबले पहले तो
इससे भी ज्यादा सर्दी पड़ती थी। सम्वत 2017 में सर्दी से खेजड़ी की डालियां
तक जल गई थी। उस दौर में तापमान मापने के साधन नहीं होने से सर्दी का माप
नहीं हो पाता था। लेकिन आज यह संभव हो रहा है। इससे भी सर्दी का अहसास ज्यादा होने लगा है।
No comments:
Post a Comment